क्या ज्योति की तरह पैदल सैकड़ों किलोमीटर चलने वाले मज़दूरों को भी सरकार ओलंपिक की तैयारी करवाएगी ?


कोरोना काल के कई किस्से कालजयी बन गए हैं, जो बरसों तक लोगों को याद रहेंगे। ऐसी ही एक कहानी बिहार की बेटी ज्योति की है जो आज सबकी जुबां पर है।
न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे दुनिया के बड़े मीडिया संस्थानों ने उनकी ख़बर को प्रमुखता से छापा है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी और उनकी सलाहकार इंवाका ट्रंप ने भी ज्योति की तारीफ की है।
भारतीय साइकिल महासंघ ने भी ज्योति के टैलेंट को देखते हुए उन्हें ट्रायल के लिए दिल्ली बुलाया है।
बिहार के दरभंगा जिले के गांव सिंहवाड़ा, सिरहुल्ली की रहने वालीं ज्योति कुमारी इस समय देश ही नहीं, दुनियाभर की मीडिया में छाई हुई हैं।

खबरों में बताया जा रहा है कि लॉकडाउन के दौरान 15 वर्षीय ज्योति अपने घायल पिता को साइकिल पर बैठाकर गुरुग्राम से दरभंगा लेकर आई हैं।
गुरुग्राम से दरभंगा की दूरी लगभग 1,200 किलोमीटर है। ज्योति ने जो साहस दिखाया है वह असाधारण है।

ज्योति के पिता मोहन पासवान का कहना है कि, ” हम सात या आठ मई को वहां से निकले थे और दरभंगा 15 मई की रात नौ बजे पहुंचे। गुरुग्राम से दरभंगा तक की दूरी साइकिल से तय की, कंही कंही ट्रक से लिफ्ट भी मिल गई, रास्ते में लोगों ने खाना-पानी भी दिया।”

ज्योति के पिता गुरुग्राम में रहकर ऑटो चलाते थे। जनवरी में सड़क दुर्घटना में पिता के घायल होने के बाद ज्योति अपनी मां के साथ गुरुग्राम गई थी।

मां कुछ दिन बाद वापस गांव लौट गई लेकिन ज्योति पिता का ध्यान रखने के लिए गुरुग्राम ही रुक गई। इसी बीच 24 मार्च से पूरे देश में लॉकडाउन हो गया।
कुछ दिनों में जमा-पूंजी भी खर्च हो गई, और कोई रास्ता न देख ज्योति ने साइकिल से घर लौटने का फैसला किया। पिता ने ज्योति की जिद पर पांच सौ रुपये में पुरानी साइकिल खरीदी। दिव्यांग पिता को साइकिल पर बैठाकर जब ज्योति आठ दिन में घर पहुंची तो आस-पड़ोस के लोग दंग रह गए ।
ज्योति के घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। मां फूलो देवी आंगनबाड़ी में सहायिका हैं। साथ ही खेतों में काम करती हैं।
पांच भाई-बहनों में दूसरे नंबर की ज्योति पैसे के अभाव में आठवीं की पढ़ाई बीच में ही छोड़ चुकी है।

ज्योति का मामला सामने आने के बाद बिहार से केंद्रीय मंत्री रामबिलास पासवान का कहना है कि,

“कोरोना महामारी के इस संकट से पूरा देश लड़ रहा है। ऐसे कठिन समय में आधुनिक श्रवण कुमार, बिहार की बेटी ज्योति पासवान ने अपने पिता को साइकिल पर बिठाकर गुरुग्राम से दरभंगा तक 1000 किमी से ज्यादा की यात्रा कर जिस हिम्मत और साहस का परिचय दिया है, उससे अभिभूत हूं। मैं केन्द्रीय खेल मंत्री किरेन रिजिजू जी से भी आग्रह करता हूं कि पूरी दुनिया में साहस की मिसाल कायम करने वाली देश की बेटी ज्योति पासवान की साइकलिंग की प्रतिभा को और अधिक संवारने के लिए इसके उचित प्रशिक्षण और छात्रवृति की व्यवस्था करें।”

केंद्रीय खेल मंत्री किरेन रिजिजू ने भी रामबिलास पासवान को जवाब देते हुए ट्विटर पर लिखा है कि,

” मैं विश्वास दिलाता हूं पासवान जी, SAI अधिकारियों और साइक्लिंग फेडरेशन्स से ज्योति कुमारी के परीक्षण के बाद मुझे रिपोर्ट करने के लिए कहूंगा। यदि संभावित पाया, तो उसे नई दिल्ली में IGI स्टेडियम परिसर में राष्ट्रीय साइक्लिंग अकादमी में प्रशिक्षु के रूप में चुना जाएगा।”

जिला साइकिलिंग संघ के अध्यक्ष प्रदीप गुप्ता का भी कहना है कि ज्योति को राज्य स्तर पर ट्रेनिंग देकर राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार किया जाएगा।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या लॉक डाउन की वजह से भूखे प्यासे पैदल हजारों किलोमीटर चलकर अपने घर पहुंचने वाले देश के बाकि मज़दूरों को भी सरकार ओलंपिक में भेजने के लिए तैयार करेगी ?
संकट के समय जब सरकार नाकाम हो जाये तो नागरिकों के पास कीर्तिमान स्थापित करने के अलावा कोई चारा नहीं बचता है।
अगर कोई बेटी गुड़गांव (गुरुग्राम) से दरभंगा तक अपने बाप को साइकिल से लेकर जाती है तो सरकार के लिए यह गर्व करने की नहीं शर्म करने की बात है।
आख़िर उसको ऐसा करने की नौबत ही क्यों आई?? उसके लिए कौन जिम्मेदार है?? क्या भारत आज उस युग में जी रहा है जंहा एक बेटी को अपने बाप को लेकर 1200 किमी की यात्रा साइकल पर करनी पड़े ? क्या यही हमारा विकास है??

यह कोई साइकिल प्रतियोगिता नहीं थी जिसके जीतने पर हम गर्व करें। यह एक मज़दूर बाप और उसकी बेटी की मज़बूरी थी जिसका सरकार को अफसोस करना चाहिए कि जब देश की ग़रीब जनता को सबसे ज़्यादा जरूरत थी हमनें मज़दूरों को किस हाल में छोड़ दिया।


 

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