ऐसा लगा जैसे हम सम्मान करवाने मरे जा रहे हैं और सरकार कह रही है-बाहर ही खड़े रहो कम्बख्तों!

शिक्षक सम्मान समारोह 2018 , अमरूदों का बाग , जयपुर से आपबीती आपके समक्ष…
तो जयपुर गये थे साहब हम , आदेश था ,तो जाना ही था ।
सो चले गए ।
रात भर जागते हुए सुबह पहुंचे ।
जयपुर जाम में फंसा हुआ , सहमा सा लगा।
खैर । एक स्कूल में रिपोर्टिंग करनी थी , स्कूल में तो छोड़िए , आस पास भी नहाने धोने , नित्यकर्म की व्यवस्था नहीं ।
कुछ फुर्तीले लोग झपट झपट कर स्कूल के एकमात्र नल को कब्जे में लेते और नहाते । अपने में ना तो इतनी फुर्ती , ना दूसरे को धकेलने और मौका हथियाने की आदत । आस पास की hotels भी भरी पूरी ठसाठस ।
साहब , सारे कर्म धर्म धरे रह गए , मुखड़ा धो पोंछ कर चमका लिया ।
वहीं पर 120 रूपये पकड़ा दिए कि भाई अपने खाने की व्यवस्था खुद कर लो , और बस चल पड़ी कार्यक्रम स्थल ।
हाथ में 120 रूपये थे पर खाना नहीं । पेट खाली । और बस अपना सम्मान करवाने कारवाँ बढ़ता रहा ।
बढ़ क्या रहे थे ट्रैफिक जाम में घिसट रहे थे। अब पहुँच ही गये अमरूदों का बाग । साहबजी, अमरुद खट्टे हो गये ।
पुलिस का भारी लवाजमा और रौबीला आदेश-“अंदर houseful है , बाहर ही खड़े रहो ।
” ऐसा लगा जैसे हम सम्मान करवाने मरे जा रहे हैं और सरकार कह रही है–बाहर ही खड़े रहो कम्बख्तों ।
शिक्षक भड़के और जबरदस्ती अंदर घुस पड़े , हम भी उस भीड़ का हिस्सा ।
एक policeman कह रहा था — जाओ जबरदस्ती अंदर , अभी लठ पड़ेंगे ।
अंदर दूसरी सुरक्षा पंक्ति । डर भी लगा , कंही सही में इज्जत और हुलिया दोनों बिगाड़ कर ना रख दे ।
बेचारे रहमदिल , हम याचकों के लठ नहीं दिया । Thanks police.
Request की तो बोले चुपचाप खड़े रहो , अंदर तिल रखने की जगह नहीं कहाँ जाओगे ।
“जाने दीजिए ना sir(!) , खड़े ही रह लेंगे।” ok , जाओ।
लगा जैसे भगवान विष्णु ने अमृत दे दिया हो , या everest फतह कर ली हो।
ना entry pass देखा , ना Id card , बस एक ही आदेश- bag बाहर , पानी की bottle bahar !
घर से नयी बोतल ले गया था , उसे भीगी आँखों से निहारा और समर्पित कर दिया । जानता था अब इससे फिर मिलन ना हो सकेगा ।
घर पर जीवन संगिनी अलग से बरसेगी – मेरी favourite बोतल दी थी उसे भी फेंक आये । अरे पानी भरा था कि बम ।
अब उस भोले जीव को कौन समझाये कि आखिर मुख्यमंत्री महोदया की सुरक्षा और सम्मान का सवाल है । और मतलब उनका ये सोचना था की मेडम की सुरक्षा और सम्मान शिक्षक बिगाड़ सकते है। शर्म करो सरकार ये शिक्षक बेचारे क्यू अपनी नोकरी को दांव पर लगाएंगे।।

अब अंदर की शानदार व्यवस्था का वर्णन । भव्य ceiling , अनेक screen protectors , जिले के अनुसार बैठने की व्यवस्था ।
पर ये क्या जितने लोग बैठे थे उसके लगभग आधे खड़े थे ।
अब जितने लोगो को बुलाया उससे ज्यादा तो आये ना होंगे , मतलब व्यवस्था में कमी । पसीने से तरबतर होकर सिरोही जिले की sitting तक पहुंचे ।
पहचान के एक साथी ने चिल्ला चिल्ला कर बुलाया , इधर से घुसो , अरे डरो मत , security की परवाह मत करो , नियम को भाड़ में जाने दो , आप तो baricates लांघो , माफ़ करना , नियम तोड़ कर घुसा और उन्होंने एक seat adjust करवा दी । कुर्सी पर बैठकर देखता रहा की महिला शिक्षक गोद में बच्चा लेकर खड़ी है, विकलांग भी खड़े है और तो और हमारे बड़े साहब (शिक्षा अधिकारी) भी लाइन में लगे हुए है। ये तो भला हुआ कुछ संस्कारी शिक्षको का जिन्होंने अपनी कुर्सी छोड़कर इन महिलाओ, विकलांगो, व् अन्य सीनियर लोगों सीट दी। इतनी उमस और गर्मी में पानी के लिए तो पूछ लेते आखिर आज तो हम सम्मान के लिए जो आये थे।। स्क्रीन पर ही ड्रामा दिखाना था तो घर पर ही देख लेते भाई।।।क्यू इतना बजट बर्बाद किया।। गरीब जनता का पैसा यूँ बहाते देख सोच रहा था इस सम्मान का हक तो मुझे नही था, अभी इतना काबिल भी नही बना हूँ में की इस तरह सम्मानित होऊं।।

वर्णन तो और भी करना रह गया सरकार लेकिन अभी मेरे शरीर और दिमाग को आराम की जरूरत है बहुत थक गया हूँ, लिख नही पा रहा हूँ।।

कोटि कोटि धन्यवाद ।

शिक्षक दिवस पर अमरूदों के बाग़ जयपुर से एक शिक्षक पर बीती सत्य घटना…
~From अपमानित शिक्षक

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